वांछित मन्त्र चुनें

ध्रु॒वासि॑ ध॒रुणे॒तो ज॑ज्ञे प्र॒थ॒ममे॒भ्यो योनि॑भ्यो॒ऽअधि॑ जा॒तवे॑दाः। स गा॑य॒त्र्या त्रि॒ष्टुभा॑ऽनु॒ष्टुभा॑ च दे॒वेभ्यो॑ ह॒व्यं व॑हतु प्रजा॒नन् ॥३४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ध्रु॒वा। अ॒सि॒। ध॒रुणा॑। इ॒तः। ज॒ज्ञे॒। प्र॒थ॒मम्। ए॒भ्यः। योनि॑भ्य॒ इति॒ योनि॑ऽभ्यः। अधि॑। जा॒तवे॑दा॒ इति॑ जा॒तवे॑दाः। सः। गा॒य॒त्र्या। त्रि॒ष्टुभा॑। त्रि॒स्तुभेति॑ त्रि॒ऽस्तुभा॑। अ॒नु॒ष्टुभा॑। अ॒नु॒स्तुभेत्य॑नु॒ऽस्तुभा॑। च॒। दे॒वेभ्यः॑। ह॒व्यम्। व॒ह॒तु॒। प्र॒जा॒नन्निति॑ प्रऽजा॒नन् ॥३४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:34


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् पुरुषों के समान विदुषी स्त्रियाँ भी उपदेश करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! जैसे तू (धरुणा) शुभगुणों का धारण करनेहारी (ध्रुवा) स्थिर (असि) है, जैसे (एभ्यः) इन (योनिभ्यः) कारणों से (सः) वह (जातवेदाः) प्रसिद्ध पदार्थों में विद्यमान वायु (प्रथमम्) पहिले (अधिजज्ञे) अधिकता से प्रकट होता है, वैसे (इतः) इस कर्म के अनुष्ठान से सर्वोपरि प्रसिद्ध हूजिये। जैसे तेरा पति (गायत्र्या) गायत्री (त्रिष्टुभा) त्रिष्टुप् (च) और (अनुष्टुभा) अनुष्टुप् मन्त्र से सिद्ध हुई विद्या से (प्रजानन्) बुद्धिमान् होकर (देवेभ्यः) अच्छे गुणों वा विद्वानों से (हव्यम्) देने-लेने योग्य विज्ञान (वहतु) प्राप्त होवे, वैसे इस विद्या से बुद्धिमती हो के आप स्त्री लोगों से ब्रह्मचारिणी कन्या विज्ञान को प्राप्त होवें ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य जगत् में ईश्वर की सृष्टि के कामों के निमित्तों को जान विद्वान् होकर जैसे पुरुषों को शास्त्रों का उपदेश करते हैं, वैसे ही स्त्रियों को भी चाहिये कि इन सृष्टिक्रम के निमित्तों को जान के स्त्रियों को वेदार्थसारोपदेशों को करें ॥३४ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्वत् स्त्रीभिरप्युपदेष्टव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(ध्रुवा) स्थिरा (असि) (धरुणा) धर्त्री (इतः) कर्मणः (जज्ञे) प्रादुर्भवति (प्रथमम्) आदिमं कार्यम् (एभ्यः) (योनिभ्यः) कारणेभ्यः (अधि) (जातवेदाः) यो जातेषु विद्यते सः (सः) (गायत्र्या) गायत्रीनिष्पादितया विद्यया (त्रिष्टुभा) (अनुष्टुभा) (च) (देवेभ्यः) दिव्यगुणेभ्यो विद्वद्भ्यो वा (हव्यम्) होतुमादातुमर्हं विज्ञानम् (वहतु) प्राप्नोतु (प्रजानन्) प्रकृष्टतया जानन्। [अयं मन्त्रः शत०७.५.१.३० व्याख्यातः] ॥३४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! यथा त्वं धरुणा ध्रुवासि, यथैभ्यो योनिभ्यः स जातवेदाः प्रथममधिजज्ञे तथेतोऽधिजायस्व। यथा स तव पतिर्गायत्र्या त्रिष्टुभानुष्टुभा च प्रजानन् देवेभ्यो हव्यं वहतु, तथैतया प्रजानन्ती ब्रह्मचारिणी कन्या भवन्तीभ्यः स्त्रीभ्यो विज्ञानं प्राप्नोतु ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या जगदीश्वरसृष्टिक्रमनिमित्तानि विदित्वा विद्वांसो भूत्वा यथा पुरुषेभ्यः शास्त्रोपदेशान् कुर्वन्ति, तथैव स्त्रियोऽप्येतानि विदित्वा स्त्रीभ्यो वेदार्थनिष्कर्षोपदेशान् कुर्वन्तु ॥३४ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी या जगात ईश्वराच्या सृष्टिकार्याचे निमित्त जाणावे व विद्वान व्हावे. पुरुषांना जसा शास्त्रांचा उपदेश केला जातो तसा स्त्रियांनाही करावा. या सृष्टिक्रमाचे निमित्त जाणून स्त्रियांना वेदाचा अर्थ समजावून सांगावा.